Gun Tray VibhagYog
Bhagwat Geeta Chapter 14
सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः ।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ॥ (५)
भावार्थ : हे महाबाहु अर्जुन! सात्विक गुण, राजसिक गुण और तामसिक गुण यह तीनों गुण भौतिक प्रकृति से ही उत्पन्न होते हैं, प्रकृति से उत्पन्न तीनों गुणों के कारण ही अविनाशी जीवात्मा शरीर में बँध
जाती हैं। (५)
तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम् ।
सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ ॥ (६)
भावार्थ : हे निष्पाप अर्जुन! सतोगुण अन्य
गुणों की अपेक्षा अधिक शुद्ध होने के कारण पाप-कर्मों से जीव को मुक्त करके आत्मा
को प्रकाशित करने वाला होता है, जिससे जीव सुख और ज्ञान के अहंकार में बँध जाता
है। (६)
रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्गसमुद्भवम् ।
तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम् ॥ (७)
भावार्थ : हे कुन्तीपुत्र! रजोगुण को कामनाओं
और लोभ के कारण उत्पन्न हुआ समझ, जिसके कारण शरीरधारी जीव सकाम-कर्मों (फल की
आसक्ति) में बँध जाता है। (७)
तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम् ।
प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत ॥ (८)
भावार्थ : हे भरतवंशी! तमोगुण को शरीर के प्रति
मोह के कारण अज्ञान से उत्पन्न हुआ समझ, जिसके कारण जीव
प्रमाद (पागलपन में व्यर्थ के कार्य करने की प्रवृत्ति), आलस्य (आज के कार्य को कल पर टालने की प्रवृत्ति) और निद्रा (अचेत अवस्था में
न करने योग्य कार्य करने की प्रवृत्ति) द्वारा बँध जाता है। (८)
सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत ।
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत ॥ (९)
भावार्थ : हे अर्जुन! सतोगुण मनुष्य को सुख में
बाँधता है, रजोगुण मनुष्य को सकाम कर्म में बाँधता है और
तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढँक कर प्रमाद में बाँधता है। (९)
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति
राजसाः ।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ॥ (१८)
भावार्थ : सतोगुण में स्थित जीव स्वर्ग के उच्च
लोकों को जाता हैं, रजोगुण में स्थित जीव मध्य में पृथ्वी-लोक में
ही रह जाते हैं और तमोगुण में स्थित जीव पशु आदि नीच योनियों में नरक को जाते हैं।
(१८)
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